इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने केंद्र सरकार से नमामि गंगे प्रोजेक्ट की कार्य प्रगति की जानकारी मांगी है। अदालत ने पूछा है कि जितने भी एसटीपी लगाए गए हैं, वे ठीक से कार्य कर रहे हैं या नहीं। उनकी क्या स्थिति है और गंगा में नालों का गंदा पानी सीधे कैसे गिराया जा रहा है। उन्हें रोकने का इंतजाम क्यों नहीं किया गया। साथ ही गंगा में न्यूनतम जल प्रवाह रखने की क्या योजना है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं न्यायमूर्ति अशोक कुमार की पूर्ण पीठ ने दिया है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी ने कहा कि इसी मुद्दे पर नमामि गंगे प्रोजेक्ट चल रहा है। इसे भी वहीं भेज दिया जाए। कोर्ट ने इसे नहीं माना।
एमिकस क्यूरी अरुण कुमार गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए न्यूनतम 50 फ़ीसदी पानी बनाए रखने की जरूरत है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस संबंध में केंद्र सरकार से कार्य योजना की जानकारी मांगी थी लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक कोई जानकारी नहीं दी। राज्य सरकार से भी गंगा में गिर रहे नालों और एसटीपी के संचालन के संबंध में जवाबी हलफनामा मांगे गए थे। उसका भी जवाब दाखिल नहीं किया गया। गंगा में एसटीपी से शोधित पानी में बायोकेमिकल पॉलीफॉर्म के गंगाजल में मिलने से प्रदूषण फैला रहा है। इसलिए ट्रीटेड पानी को गंगा में न गिराकर अन्यत्र ले जाया जाए।