लखनऊ सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने केएक महीने से ज्यादासमय बीतने के बाद भी अयोध्या में श्रीरामजन्म भूमि मंदिर निर्माण ट्रस्ट का गठन नहीं हो सका है। इस देरी की वजह अध्यक्ष पद के लिए नाम तय करने में आ रही मुश्किल है। इसके लिए शंकराचार्यों व धर्माचार्यों से लेकर आरएसएस के पदाधिकारियों और राजनेताओंतक की दावेदारी है। ट्रस्ट की रूपरेखा, पर गहन विमर्श चल रहा है।
- ट्रस्ट गठन के सिलसिले में केंद्र सरकार की कई बैठकें हो चुकी हैं। कई बैठकों में गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे, लेकिन खाका अंतिम रूप नहीं ले सका। इसकी वजह है- ट्रस्ट में शामिल होने व अध्यक्ष पद के दावेदारों की काफी बड़ी संख्या हाेना है। इसमें महत्वपूर्ण शख्सियतें शामिल हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत के नाम की भी चर्चा है। ट्रस्ट भावी मंदिर के निर्माण, धन की व्यवस्था, प्रशासन, पूजन और संपूर्ण व्यवस्था की देखभाल करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बनने वाला यह पहला बड़ा ट्रस्ट होगा, जो पहले बनेगा, फिर मंदिर निर्माण होगा। देश में बाकी ट्रस्ट मंदिर के प्रबंधन के लिए बाद में बने हैं। 'ट्रस्ट एक्ट 1882' में पंजीकरण के जरिये भी ट्रस्ट का गठन हो सकता है, लेकिन ऐसे ट्रस्ट 'डीड' से बनते हैं। इनमें बाद में दिक्कतें आती है। संसद से बनने वाले ट्रस्ट में विवाद की गुजाइंश कम रहती है। केंद्र सरकार संसद में बिल लाकर ट्रस्ट का गठन करेगी। संभव है कि इसके लिए विशेष सत्र 'मकर संक्रांति' 14 जनवरी के बाद आहूत किया जाए।
9 नवंबर के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अयोध्या में श्रीरामलला को दी गई 67 एकड़ जमीन के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट गठित करना है। सूत्रों का कहना है कि ट्रस्ट के सलाहकार मंडल के नाम तय हैं। इसमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, उप्र के राज्यपाल और मुख्यमंत्री रहेंगे। कार्यकारिणी के सदस्यों को लेकर पेंच फंस रहा है। ट्रस्ट में मंदिर निर्माण सेवा के लिए अलग कमेटी होगी। विहिप सूत्रों का कहना है कि मंदिर निर्माण कमेटी में 7 से 9 लोगों के नाम लगभग तय हैं। इस कमेटी के पास ही मंदिर निर्माण की पूरी जिम्मेदारी होगी। इनमें वे सभी लोग हाेंगे, जो राम मंदिर आंदोलन से लंबे समय से जुड़े रहे हैं।