संस्कृतियों के संगम में तीर्थराज प्रयाग , माघ मेला के स्नान पर्व 'मौनी अमावस्या' पर श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई

प्रयागराज ,संस्कृतियों के संगम में तीर्थराज प्रयाग, माघ मेला मे बड़े स्नान पर्व 'मौनी अमावस्या' पर शुक्रवार श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई। संगम किनारे तड़के दूधिया रोशनी के बीच चार बजे से ही महिला, पुरुष, युवा, बच्चे और दिव्यांगों ने गंगा में खड़े होकर श्रद्धालु ने पुण्य की डुबकी लगानी शुरू कर दी। शीत लहर में भी श्रद्धालुओं की आस्था अडिग रही। संगम तट पर भीड़ इस कदर उमडी की मानो आस्था का समंदर हिलोरे मार रहा हो।श्रद्धालुओं ने तड़के करीब पांच बजे से स्नान शुरू कर दिया। इस मौके पर सुरक्षा के लिए कड़े बन्दोबस्त किए गए हैं। पुलिस, पीएसी, आरएएफ और ड्रोन की निगरानी में पूरा मेला क्षेत्र है। चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जा रही हैं।                                         


साधु-महात्मा और गृहस्थों ने त्रिवेणी तट पर चार बजे से ही पुण्य की डुबकी लगाना शुरू कर दिया। आस्था की डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं का रेला से संगम क्षेत्र ठसाठस भर गया है। कड़ाके की सर्द और शीत लहरी पर श्रद्धालुओं की आस्था भारी पड़ रही है। न कोई आमंत्रण और न ही किसी तरह का निमंत्रण श्रद्धा से भरपूर श्रद्धालुओं की भीड़ सिर पर गठरी और कंधे पर कमरी रखे प्रयागराज की सड़कों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों से भीड़ मेला क्षेत्र की ओर लगतार बढ़ती चली आ रही है।


आस्था की डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं में केवल भारतीय ही नहीं बल्कि कुछ विदेशियों को भी संगम तीरे आध्यात्म का आनंद लेते देखा गया है। सिर पर गठरी का बोझ रखे दीन-दुनिया से बेपहरवाह श्रद्धालुओं का लक्ष्य पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती में परिवार और सगे संबंधियों के लिए आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करना है।         


इलाहाबाद जंक्शन स्टेशन, सिटी स्टेशन, प्रयाग और प्रयाग घाट स्टेशनों से निकल रही भीड़ का रुख संगम ही है। नैनी और छिवकी एवं झूंसी स्टेशन हो या सिविल लाइंस बस अड्डा अथवा नैनी और झूंसी में बनाए गए अस्थायी बस अड्डों पर भी यही दृश्य बने हैं। शहर से लेकर मेला के प्रवेश मार्गों तक और फिर मेला क्षेत्र के अंदर तक सिर पर गठरी ही गठरी ही दिखाई दे रही है।


माघ मेला में आस्था और अध्यात्म के साथ आधुनिकता का भी संगम देखने को मिला। भव्य और दिव्य कुंभ में काफी कुछ बदला है। नहीं बदली तो वह गठरी, जो मेले की रौनक है। श्रद्धालुओं का रेला त्रिवेणी में गोता लगाने के लिए पांच से सात किलोमीटर की दूरी पैदल चल कर संगम पहुंच रहा है। चारों ओर आस्था का रेला नजर आ रहा है।परेड में काली सड़क हो या फिर लाल सड़क। शहर की सड़कों से लेकर मेला तक में मौनी अमावस्या पर आस्था का ऐसा जमघट लगने लगा है कि मौनी अमावस्या की दिव्यता चारों ओर निखरने लगी। गठरी लिए इन श्रद्धालुओं को न तो किसी व्यवस्था से मतलब होता है और न ही रोशनी से। 


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